Price: ₹150.00
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अकबर के पुरखे जलजला ला देने वाली ताकत के मालिक थे और वे आठ सौ सालों से तलवार चला रहे थे। मुगलों की सेनाओं ने समरकंद और खुरासान से चलकर हिन्दूकुश पर्वत पार कर लिया था और अब वे गंगा-जमुना के मैदानों पर राज कर रहे थे किंतु महाराणाओं का मेवाड़ अब तक मुगलों की पहुंच से बाहर था। खुरासान से आया बादशाह अकबर मेवाड़ के गर्वित मस्तक को झुकाने के लिये कृतसंकल्प था। आठ सौ सालों से खुरासानियों से मोर्चा ले रहे महाराणा भी तैयार थे। हल्दीघाटी में एक अवसर था जब महाराणा इस लड़ाई को उसके अंतिम परिणाम तक पहुंचा देते किंतु स्थितियां तब विषम हो गईं जब सदियों से महाराणाओं के अधीन रहकर देश के शत्रुओं से लड़ते आ रहे उत्तर भारत के हिन्दू राजाओं ने अकबर की चाकरी स्वीकार कर ली। वे भी अकबर की सहायता के लिए महाराणा प्रताप के विरुद्ध अपनी तलवारें ले आए थे। महाराणा प्रताप ने हार नहीं मानी। वह लड़ा और तब तक लड़ता रहा जब तक उसने अकबर से मेवाड़ का चप्पा-चप्पा नहीं छीन लिया। पढ़िये रोंगटे खड़े करने वाले इस युद्ध का इतिहास, आधुनिक समय के सबसे चर्चित इतिहासकार डॉ. मोहनलाल गुप्ता की लेखनी से।
हल्दीघाटी का युद्ध और महाराणा प्रताप Haldighati Ka Yuddh Aur Maharana Pratap
Price: ₹150.00 Features: अकबर के पुरखे जलजला ला देने वाली ताकत के मालिक थे और वे आठ सौ सालों से तलवार चला रहे थे। मुगलों की सेनाओं ने समरकंद और खुरासान से चलकर हिन्दूकुश पर्वत पार कर लिया था और अब वे गंगा-जमुना के मैदानों पर राज कर रहे थे किंतु महाराणाओं का मेवाड़ अब…
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